बिहार हमेशा से शिक्षा की धरती रहा है — नालंदा और विक्रमशिला जैसी विश्वविख्यात विश्वविद्यालयों की भूमि। लेकिन आज का बिहार का शिक्षा तंत्र उस गौरव से बहुत दूर जा चुका है।
यहाँ की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है Magadh University, जो अपने विलंबित परीक्षा और परिणामों के लिए बदनाम हो चुकी है।
छात्रों की ज़िंदगी में फंसी डिग्री
Magadh University में ग्रेजुएशन करने में जहाँ तीन साल लगने चाहिए, वहीं यहाँ छात्रों को पाँच से छह साल लग रहे हैं। सेशन डिले, रिजल्ट लेट और प्रशासनिक लापरवाही ने छात्रों का भविष्य दांव पर लगा दिया है।
मेरी आपबीती
मेरे अपने बड़े भाई ने इसी विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन किया है। उनका तीसरे साल का रिज़ल्ट अभी तक नहीं आया है — जबकि छह महीने से ज़्यादा हो चुके हैं।
दूसरे साल में तो और भी बड़ा अन्याय हुआ — जानकारी की कमी के कारण वो दूसरे वर्ष का फॉर्म ही नहीं भर पाए, और नतीजा ये हुआ कि उनका एक पूरा साल बर्बाद हो गया। क्या किसी विश्वविद्यालय का काम छात्रों को इस तरह अंधेरे में रखना है? क्या ये शिक्षा का मंदिर है या नौकरशाही का मज़ाक?
Magadh University की लापरवाही और सरकार की चुप्पी
आज भी विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर गड़बड़ियाँ हैं, परीक्षा तिथियाँ अचानक बदल जाती हैं, और रिज़ल्ट महीनों तक अटके रहते हैं। सरकार के पास इन मुद्दों पर कोई ठोस योजना नहीं है।
इस बीच, हज़ारों छात्र अपने करियर और भविष्य को लेकर अनिश्चितता में जी रहे हैं।
चुनाव का वक्त — सोच-समझकर वोट दें
अब जब चुनाव का समय आ गया है, तो हमें याद रखना चाहिए कि ये वही लोग हैं जिनकी नीतियों और लापरवाही की वजह से छात्रों का भविष्य बर्बाद हो रहा है।
वोट डालने से पहले सोचें — क्या हम अगले पाँच साल फिर ऐसे ही हालात झेलना चाहते हैं?
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